वो समां था थमा हुआ
वो आँधियों ने भी था रुख मोड़ा
इस बवंडरों की महफ़िल मैं
खामोशी ने साथ न छोड़ा
जब हवा मैं मायूसी थी
और मरुस्थली था मेरा जहान
तब चला एक ताज़ी हवा का झोंका
और ले गया वो मेरी सारी थकान
मेरे हर रोम रोम को जैसे वो सहला गया
मेरी सारी चोटों पर जैसे मलहम लगा गया
जिन आँखों की चमक थी गायब
उनमे वो अपनी चकाचोंद भर गया
निकली थी खुद वो एक राही बन के
पर अब किसी की मंज़िल बन गयी
एक अजीब सा सुकून था उस्के अक्स में
मेरी अंदर की आग को शीतल कर गया
कुछ जादू ही था उसके स्पर्श में
की इस मरुस्थली मैं भी वो फूल उगा गया
एक अरसे के बाद इस दिल ने वो धड़कन महसूस की है
रागों मैं बहते खून की गर्मी महसूस की है
भूल ही गया था मैं की प्यार क्या होता है
आज पहली बार होठों पे वो नमी महसूस की है.
मायूसी ने समां बंध रखा था यहाँ
आज ये सहर खुशियाँ खीच लायी है
उस परवरदिगार की रहमत ही है ये
जो ताज़ी हवा का झोंका खींच लायी है